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करवा चौथ : जानें सही तारीख, पूजा मुहूर्त और चांद निकलने का समय

करवाचौथ सुहाग का पर्व है जो हर साल कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व में चांद की पूजा और चंद्रदर्शन का बड़ा ही महत्व है। निर्जला व्रत होने की वजह से इसे कठिन व्रत के रूप में जाना जाता है। आइए करवाचौथ व्रत के नियम विधि विधान, महत्व और महात्म्य को विस्तार से जानें।

करवा चौथ व्रत को करक चतुर्थी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन यह व्रत करवा माता के नाम से किया जाता है। इस व्रत को सुहाग का पर्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से सुहाग की उम्र लंबी होती है साथ ही पति पत्नी के बीच प्रेम और आपसी स्नेह बना रहता है।

करवा चौथ 2024 तारीख और समय:
तिथि: 20 अक्टूबर, 2024 (रविवार)
व्रत प्रारंभ: सूर्योदय से पहले सरगी खाकर व्रत प्रारंभ किया जाएगा।
पूजा मुहूर्त: शाम 5:55 PM से 7:10 PM तक (लगभग)
चंद्रोदय का समय: रात 8:24 PM (स्थान के अनुसार समय में अंतर हो सकता है)

करवा चौथ: व्रत, पूजा विधि, कथा और महत्व
करवा चौथ एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है, जिसे विशेष रूप से उत्तर भारत की सुहागिन स्त्रियों द्वारा मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। करवा चौथ का पर्व हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह त्यौहार न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि पति-पत्नी के बीच प्रेम और विश्वास का प्रतीक भी है।

करवा चौथ व्रत की तैयारी
करवा चौथ से पहले महिलाएं अपने घरों की सफाई और सजावट करती हैं। इस दिन वे विशेष रूप से श्रृंगार करती हैं, जैसे साड़ी या लहंगा पहनना, मेहंदी लगाना और बिंदी, चूड़ियां, सिंदूर आदि पहनकर सोलह श्रृंगार करती हैं। यह व्रत सूर्योदय से पहले सरगी (भोजन) खाने के साथ शुरू होता है, जिसे सास अपनी बहू को देती है। इसके बाद महिलाएं दिनभर बिना पानी पिए और बिना भोजन किए व्रत रखती हैं।

करवा चौथ पूजा विधि

करवा चौथ की पूजा शाम के समय होती है, जिसमें महिलाएं समूह में एकत्रित होकर करवा माता की पूजा करती हैं। पूजा में मिट्टी या धातु का करवा (घड़ा) और दीपक का विशेष महत्व होता है। पूजा करते समय महिलाएं करवा चौथ की कथा सुनती हैं और करवा माता से अपने पति की लंबी उम्र और खुशहाल जीवन की प्रार्थना करती हैं। करवा चौथ की आरती के बाद महिलाएं अपने पति के हाथों से पानी पीकर और भोजन ग्रहण करके व्रत तोड़ती हैं।

करवाचौथ व्रत के नियम
करवा चौथ व्रत रखने का नियम क्षेत्रीय परंपरा के अनुसार अलग-अलग है। कई क्षेत्रों में व्रती महिलाएं सूर्योदय से पूर्व ब्रह्म मुहूर्त से पहले उठकर सरगी खाती हैं इसके बाद व्रत आरंभ होता है। जबकि कुछ क्षेत्रों में सरगी की परंपरा नहीं है। रात्रि भोजन के बाद व्रती अगले दिन चंद्रोदय के दर्शन के बाद ही अन्न जल ग्रहण करती है। लेकिन एक बात सभी में समान है कि व्रत खोलने के लिए चंद्रमा के दर्शन करना जरूरी होता है।

करवा चौथ व्रत कथा और कहानी
करवा चौथ व्रत कथा हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस व्रत की कथा कई लोककथाओं पर आधारित है, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी वीरवती और करवा की है। इन दोनों कहानियों का जिक्र करवा चौथ की पूजा के समय किया जाता है।

1. वीरवती की कथा:
प्राचीन काल में एक सुंदर और संस्कारी रानी वीरवती थी, जो अपने सात भाइयों की एकमात्र बहन थी। उसने विवाह के बाद पहला करवा चौथ व्रत रखा। चूंकि यह उसका पहला व्रत था, वह बिना जल और अन्न के रहना उसके लिए मुश्किल हो रहा था। दिन चढ़ने के साथ ही उसे भूख-प्यास से बेचैनी होने लगी। उसके भाइयों को उसकी हालत देखकर दुख हुआ, लेकिन उन्होंने अपनी बहन का व्रत तुड़वाने की योजना बनाई। भाइयों ने एक पेड़ के पीछे आग जलाकर चंद्रमा के समान दृश्य पैदा किया और वीरवती से कहा कि चंद्रमा उदय हो चुका है और वह अपना व्रत तोड़ सकती है।

वीरवती ने भाइयों की बात मानकर व्रत तोड़ दिया, लेकिन जैसे ही उसने भोजन ग्रहण किया, उसे यह समाचार मिला कि उसके पति की मृत्यु हो गई है। वह बहुत दुखी हो गई और भगवान से प्रार्थना करने लगी। उसकी सच्ची भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा कि वह करवा चौथ का व्रत पूरी निष्ठा के साथ फिर से रखे। वीरवती ने ऐसा ही किया और इस बार उसके पति को नया जीवन प्राप्त हुआ। इस तरह से करवा चौथ का व्रत अपने पति की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

2. करवा की कहानी:
करवा चौथ की दूसरी प्रसिद्ध कथा करवा नामक एक पवित्र और निष्ठावान पत्नी की है। करवा अपने पति के प्रति बहुत प्रेम और निष्ठा रखती थी। एक दिन उसके पति नदी में स्नान कर रहे थे, तभी एक मगरमच्छ ने उनके पैर पकड़ लिए। करवा ने अपने पति को बचाने के लिए भगवान यमराज से प्रार्थना की। यमराज ने पहले मगरमच्छ को छोड़ने से मना कर दिया, लेकिन करवा की तपस्या और प्रेम को देखकर उन्हें झुकना पड़ा। करवा ने मगरमच्छ को एक सूत (धागे) से बांधकर यमराज से उसे मृत्युदंड देने की मांग की।

करवा की निष्ठा और तपस्या से प्रभावित होकर यमराज ने मगरमच्छ को मृत्युदंड दिया और उसके पति को लंबी उम्र का वरदान दिया। इस कथा के अनुसार, करवा चौथ का व्रत महिलाओं द्वारा अपने पति की सुरक्षा और लंबी आयु के लिए रखा जाता है। यह कथा निष्ठा, प्रेम और समर्पण की शक्ति को दर्शाती है।

करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बेहद गहरा है। इस व्रत को स्त्रियां निस्वार्थ भाव से अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं। यह पर्व पति-पत्नी के बीच प्रेम और विश्वास को मजबूत करता है और उनके रिश्ते में नई ऊर्जा का संचार करता है। इसके अलावा, करवा चौथ का पर्व भारतीय समाज में परिवार और रिश्तों की अहमियत को भी दर्शाता है।

करवाचौथ का व्रत कौन कर सकते हैं
पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ का व्रत सुहागन महिलाएं करती है। वैसे जिन कन्याओं का विवाह तय हो गया है वह भी अपने होने वाले पति के लिए यह व्रत रख सकती हैं। लेकिन यहां दोनों के व्रत के नियम में भेद है। कुंवारी कन्याएं तारों को देखकर व्रत खोलती हैं। जबकि सुहागन महिलाओं को चांद को देखकर व्रत खोलना होता है।

करवा चौथ व्रत में किनकी पूजा होती है
करवाचौथ व्रत में करवा माता के साथ चंद्रदेव की पूजा होती है। साथ ही चतुर्थी तिथि होने की वजह से भगवान गणेश के साथ शिव पार्वती की भी पूजा का विधान है।

करवा चौथ के आधुनिक पहलू
वर्तमान समय में करवा चौथ का स्वरूप थोड़ा बदल गया है। अब केवल महिलाएं ही नहीं, बल्कि कई जगहों पर पुरुष भी अपनी पत्नियों के लिए व्रत रखते हैं। यह प्रेम और समर्पण का प्रतीक बन चुका है। इस दिन को सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, जहां लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं और अपनी तस्वीरें साझा करते हैं।

करवा चौथ के दौरान सावधानियां
व्रत के दिन भारी काम से बचें, ताकि शरीर में ऊर्जा बनी रहे।
सरगी के समय पौष्टिक भोजन करें, जिसमें फल, मेवे और तरल पदार्थ शामिल हों।

जिन महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं, वे डॉक्टर से सलाह लेकर व्रत रखें।

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