उपमुख्यमंत्री का आदिवासी जनप्रतिनिधियों पर जुबानी प्रहार,हाई कमान की खुली छूट..
शुभांकुर पाण्डेय सरगुजा समय अंबिकापुर :- आजादी के 75 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं किंतु आज भी जिस उद्देश्य को लेकर आजादी की लड़ाई लड़ी गई थी की कमजोर वंचित और हाशिये पर रहे सामाजिक वर्गों को मुख्य धारा पर लाया जाएगा और उन्हें राजशाही और उनके सनकपन से समाज को मुक्ति दिलाई जाएगी किंतु सत्ता के लोभी राजनेताओं द्वारा लोकतंत्र के अधीन अपनी राजशाही ताकत धन दौलत के प्रभाव से लोकतंत्र को बेईमान साबित कर दिया जिसके कारण सरगुजा कभी भी राजशाही और उनके दरबारी एवं चाटुकारों के आतंक से मुक्त नहीं हो पाया.
2023 की विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रही है वैसे-वैसे उपमुख्यमंत्री का जुबानी प्रहार छत्तीसगढ़ के संवैधानिक जनप्रतिनिधियों जो की एक विशेष समाज आदिवासी समाज से आते हैं उन्हें चुन -चुन कर अपना निशाना बनाते हुए धमकी भरे शब्दों का चयन करते हुए अपने राजशाही रुतबे का अंदाजा लगवाने के लिए प्रयासरत हैं.
बता दें की जिस प्रकार से उपमुख्यमंत्री का जुबानी प्रहार इन आदिवासी जनप्रतिनिधि पर किया जा रहा हैं उस तरह की संज्ञा सड़क छाप लोगों के हरकत जैसी दी जा सकती हैं.
स्वास्थ्य मंत्री के द्वारा आदिवासी नेताओं का लगातार विरोध करने का कारण क्या यह तो उपमुख्यमंत्री एवं स्वास्थ्य मंत्री ही जाने लेकिन उनके इस तरह के व्यवहार से कांग्रेस पार्टी का सामंतवादी चेहरा लगातार उजागर होता नजर आ रहा है.
हैरानी की बात तो यह हैं की उपमुख्यमंत्री के इस तरह के अनाप-सनाप बयान बाजी से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एवं कांग्रेस पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर पिछड़ा वर्ग विरोधी एवं आदिवासी विरोधी बताने वाली भाजपा पार्टी जो छोटे-छोटे बातों पर सर फुड़उवल से लेकर हाय तौबा मचाने लगते हैं उसे भाजपा पार्टी के दिग्गज नेताओं के द्वारा उपमुख्यमंत्री के लगातार आने वाले बयान के बारे में हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठी हैं क्या इन्हें आदिवासियों का अपमान दिखाई नहीं देता.
सूत्रों की अगर बात की जाये तो कांग्रेस पार्टी ही फंड और आर्थिक जरूरत के कारण आजादी की लड़ाई लड़ते-लड़ते इन राजा राजवाड़ो के पनाह का कर्जदार बनी और आजादी के बाद भी इनके अवशेषों को ढोती रही जब जनता को कांग्रेस पार्टी की सामंती वास्तविकता और मजबूरी समझ में आई तब आजादी के 50 वर्ष के भीतर ही कांग्रेस का प्रस्थानकाल शुरू हो गया.
आश्चर्यजनक चीज है कि अपने आप क़ो लोकतंत्र की चौकीदार और रक्षक बताने वाली भाजपा भी राजशाही को संरक्षण देने में पीछे नहीं रही कई राजाओं महाराज भाजपा में अपनी राजशाही चमक दमक और भोग बिलास वाली जीवन शैली के बावजूद लोकतंत्र के मसीहा बने हुए हैं.
छत्तीसगढ़ में एक किसानों के बेटे को मुख्यमंत्री बनने पर सामंती ताकतों की पीड़ा समय-समय पर निकलती रही. प्राप्त जानकारी के अनुसार भाजपा और टी एस बाबा ने मिलकर भूपेश बघेल को अपमानित और प्रताड़ित करने का षड्यंत्र चलाया जिसमें मन माफिक सफलता नहीं मिलने पर अमरजीत भगत, बृहस्पति सिंह, चिंतामणि महाराज, गुलाब कमरों जैसे समाज के अग्रणी और आदिवासी समाज के सामाजिक परिवर्तन लाने वाले नेताओं को चुन चुन कर सामंती मानसिकताओं द्वारा अपमानित किया जा रहा है.
अब देखना होगा कि टी एस बाबा पर पार्टी विरोधी और आदिवासी विरोधी क्रियाकलाप का कांग्रेस पार्टी के आला कमान कितना बचाव और संरक्षण करती है या टी एस बाबा पर लगाम लगाती है या उनके राजनीतिक बौखलाहट से छत्तीसगढ़ की जीती हुई सत्ता को गवना मंजूर करती है.
अब देखने वाली बात यह हैं की जहां भाजपा 2023 के चुनाव में आदिवासी चेहरा दिग्गज नेता रामविचार नेताम को मुख्यमंत्री के कैंडिडेट के रूप में आगे करने के मूड में हैं वही मुख्यमंत्री की दौड़ में असफल टी एस सिंह सिंह इस बार आदिवासी समाज का अपमान कर सीएम बनने में सफल हो जाते हैं या नहीं.
जानकारी के लिए बता दें की उपमुख्यमंत्री अपनी नाकामी छिपाने के लिए दूसरे आदिवासी विधायकों पर जुबानी हमला बोल कर उनका सामाजिक अपमान कर रहे हैंजिसका मुख्य कारण यह माना जा सकता हैं की इनके ऊपर कोई उंगली ना उठा सके उपमुख्यमंत्री एवं स्वास्थ्य मंत्री की नाकामी इस कदर देखने क़ो मिल रही हैं की जिस जिस विभाग का मंत्रालय इन्हे दिया गया वह व्यवस्था के नाम पर गर्त में ही जाता दिखा.
छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री एवं उपमुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सम्हालने वाले नाकाम मंत्री जिन्होंने ना तो अपने विधायक होने का फर्ज सरगुजा की जनता के साथ निभा पाया ना ही मंत्री बनने के बाद संबंधित विभाग के दुर्दशा को सुधार पाने में कामयाबी हासिल कर पाए इसके कारण सरगुजा की आम जनता उपमुख्यमंत्री, सरगुजा विधायक एवं स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंह देव से काफ़ी खफा हैं.
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार उपमुख्यमंत्री ने बताया की वे अन्य विधायकों का सर्वे करवा रहे हैं की कौन विधायक जितने योग्य हैं कौन नहीं मतलब की स्वयं यह कहना की मुझे सरगुजा की जनता मात्र जीत दर्ज करवा दें भले वोट का अंतर मात्र 1 वोट क्यों ना हो उनके द्वारा अन्य विधायकों का सर्वे करना मतलब वही वाली कहावत क़ो चरितार्थ करती हैं की खुद के घर में लगी आग क़ो भुझाने के जगह पडोसी के घर में लगी आग में हाथ सेकने का जुगाड़ देखना यही हाल स्वास्थ्य मंत्री का माना जा सकता हैं. रही बात इनके सर्वे कराने वाले बात की तो सर्वे करने वालों में इनके दरबारी लोग ही आगे हैं,तो क्या सर्वे के नाम पर अपनों को रेवड़ियाँ बांटने की दुकान खोल रखे हैं सरगुजा के महाराजा??
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